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उत्तराखंड के लोकपर्व इगास की हार्दिक शुभकामनाएं

उत्तर भारत के प्रमुख त्योहारों में दीपावली से ठीक ११ दिन के बाद , उत्तराखंड देवभूमि का पर्व इगास (बूढ़ी दीपावली) के रूप में मनाया जाता है। 

उत्तराखंड का प्रत्येक परिवार खासकर जो अभी भी गांव क्षेत्र में रह रहा है, हम जैसे व्यक्ति , आज इस अवसर पर दिन सुबह मिठास युक्त परंपरागत व्यंजन बनाए जाते हैं। हमारे उत्तराखंड परंपरा में पूजा पाठ का अपना ही विशेष महत्व है, यह परिपाटी हमारे पूर्वजों से चलती आ रही है ,रात में हम लोग विशेष तांत्रिक अनुष्ठान क्रिया करके अपने स्थानीय एवं कुलदेवी, गुरु , एवं अपने पूर्वजों का आह्वान एवं देवताओं को प्रसन्न करते हैं, उत्तराखंड की प्रत्येक वैदिक पद्धति का आधार तांत्रिक ही है, परंतु प्रचलन में अधिकता होने के कारण आज उन्हें भी ही को वैदिक उपासना में माना लगा है, पूजा अर्चना तुरंत बाद अग्नि देवता को समर्पित एक मुख्य त्योहार शारीरिक चक्रको जागृत करने का प्रावधान के साथ के बाद भैला एक प्रकार की मशाल जलाकर उसे घुमाया जाता है और ढोल-नगाड़ों के साथ आग के चारों ओर लोक नृत्य किया जाता है। तथा अपनी ईस्ट, कुल देवी देवताओं को समर्पित लोग गाथाएं एवं गीत गाते हैं।

एक मान्यता के अनुसार गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे।

मुख्य किंवदंती: करीब ४०० साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा।

इसी बीच बग्वाल (दिवाली) का त्यौहार भी था, परंतु इस त्योहार तक कोई भी सैनिक वापस न आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए किसी ने भी दिवाली (बग्वाल) नहीं मनाई।लेकिन दीपावली के ठीक ११ वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापस लौट आए। इसी खुशी में दिवाली मनाई गई।


उत्तराखंड के लोकपर्व इगास की हार्दिक शुभकामनाएं